Tuesday, September 10, 2024


नजर उठीं,

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

 

नजर उठीं,

उठकर लड़ी,

लड़कर झुकीं,

झुककर खिली।

 

तुम भँवरा बने,

हम फूल बने,

तुम गूँजे,

फिर उड़े,

हम खिले,

फिर बुझे।

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