Sunday, September 1, 2024


एक बूँदः

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

सागर से चुराकर अपना अस्तित्व

वाष्प बन रख लिया बादल रूप।

 

सूरज से चुराकर उसकी किरणें

इन्द्रधनुषी रंग में रंगा तन-मन।

 

तपती धरती को देख मन तड़पा

अश्रु लड़ी में पिर आयी धरती पर।

 

किन्तु सीपी में गिरी, बनी एक मोती

एक बूँद नन्हीं सी, प्यारी सी।

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