धरती से उड़ चली पतंग
डॉ. मंजूश्री गर्ग
आकाश छूने चली पतंग.
इतराई, मंडराई, भूली
धरती से है गहरा नाता.
डोर कटी तो पट से
धरती पर आन गिरी।
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