जब बच्चे छोटे होते हैं तो नादानी के कारण ऐसी
वस्तुओं को लेने की जिद्द करते हैं कि माँ-बाप के लिये उसे पूरा करना असम्भव होता
है. ऐसे ही बाल मन के हठ का वर्णन कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में किया है-
मैया मैं तो चन्द खिलौना लैहौं।
जैहों लोटि धरनि मैं अबहिं तेरी गोद न ऐहौं।
सुरभि का पयपान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौ पूत नन्दबाबा को तैरो सुत न कहैहौं।
सूरदास
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