Friday, February 28, 2025

 

डॉ. उदयभानु हंस


डॉ. मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि-  2अगस्त, सन् 1926 ई. पंजाब, पाकिस्तान

पुण्य-तिथि-  सन् 26 फरवरी ई. 2019 ई. हिसार. भारत

 

उदयभानु हंस हिंदी के मुख्य कवि थे और हिंदी में रूबाई के प्रवृत्तक कवि, जो रूबाई सम्राट के रूप में लोकप्रिय हुये। उनकी रूबाईयों का संग्रह हिन्दी रूबाईयां सन् 1952 ई. प्रकाशित हुआ, जो हिन्दी पद्य साहित्य में नया और निराला प्रयोग था। उदयभानु हंस जी का जन्म पाकिस्तान में हुआ, सन् 1947 ई. में भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत के पंजाब प्रान्त के हिसार जिले में आ गया. जब सन् 1966 ई. में हरियाणा अलग राज्य बना तो उदयभानु हंस को हरियाणा राज्य का राज्य कवि घोषित किया गया।

 

उदयभानु हंस ने मिडिल तक उर्दू-फारसी पढ़ी और घर में उनके पिता हिन्दी और संस्कृत पढ़ाते थे। उनके पिता जी हिन्दी और संस्कृत के विद्वान थे और कवि भी थे। बाद में हंस जी ने प्रभाकर और शास्त्री की शिक्षा प्राप्त की और हिन्दी में एम. ए. किया। सन् 1994 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा प्रयागराज में उन्हें विद्या वाचस्पति (पीएच. डी) की मानद् उपाधि से सम्मानित किया गया। उदयभानु हंस ने पढ़ाई पूरी करने के बाद एक शिक्षक के रूप में कार्यभार सँभाला और हिसार के एक सरकारी कॉलेज से प्रिंसिपल के रूप में सेवा निवृत्त हुये। वह चंड़ीगढ़ साहित्य अकादमी के सचिव भी रहे और हरियाणा साहित्य अकादमी की सलाहकार समिति के सदस्य भी थे।

 

उदयभानु हंस की प्रकाशित रचनायें-

1.      भेड़ियों के ढ़ंग

2.      हंस मुक्तावली

3.      संत सिपाही

4.      देसन में देस हरियाणा

5.      शंख और शहनाई

उदयभानु हंस को सन् 1968 ई. में गुरू गोविंद सिंह के जीवन पर आधारित महाकाव्य संत सिपाही के लिये उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1992 ई. में भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिल्ली में गीत गंगा सम्मान से पुरस्कृत किया गया। सन् 1994 ई. में हिमाचल प्रदेश की प्रमुख संस्था हिमोत्कर्ष द्वारा अखिल भारतीय श्रेष्ठ साहित्यकार के सम्मान से सम्मानित किया गया। सन् 2009 ई. में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा हरियाणा साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। उनके सम्मान में प्रत्येक वर्ष उदयभानु हंस पुरस्कार दिये जात् हैं।

उदयभानु हंस की रूबाईयाँ-

 

मँझधार से बचने के सहारे नहीं होते,

दुर्दिन नें कभी चाँद सितारे नहीं होते,

हम पार भी जायें तो भला किधर से,

इस प्रेम की सरिता के किनारे नहीं होते।

1.

 

अनुभूति से जो प्राणवान होती है,

उतनी ही वो रचना महान होती है।

कवि के ह्रदय का दर्द, नयन के आँसू,

पीकर ही तो रचना जवान होती है।

 

          उदयभानु हंस

 

 


Thursday, February 27, 2025


सुबह की सुनहली किरण सा प्यार तुम्हारा।

ओस की बूँद सा मधुरिम प्यार तुम्हारा।

दौज के चाँद सा देदीप्य प्यार तुम्हारा।

सूक्ष्म होकर भी आशाओं भरा प्यार तुम्हारा।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, February 26, 2025


26 फरवरी, 2025 फागुन मास महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें

हरषे सब देव-मनुज गण।
शिव-पार्वती मंगल-विवाह।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Tuesday, February 25, 2025

 


जन्म शताब्दी वर्ष

पं. हर प्रसाद शास्त्री


डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 15 अक्टूबर, सन् 1923 .

पुण्य-तिथि- 8 मार्च,सन् 1992 .

 

पं. हर प्रसाद शास्त्री का जन्म हापुड़(. प्र.) के पास श्यामपुर गाँव में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था। इनके पिता पं. सोहनलाल शर्मा और माँ ज्वाला देवी थीं। पं. हर प्रसाद शास्त्री की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई थी। संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी से पं. हर प्रसाद शास्त्री जी ने शास्त्री की परीक्षा पास की थी। इसके बाद गाजियाबाद(. प्र.) के सनातन धर्म इंटर कॉलेज में अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया। अद्यापन करते हुये ही आगरा विश्व विद्यालय से हिन्दी और संस्कृत में एम. . किया।

पं. हर प्रसाद शास्त्री विशेष रूप से संस्कृत के विद्वान थे फिर भी शास्त्री जी ने हिन्दी के प्रचार और प्रसार में अपना विशेष योगदान दिया। विशेष रूप से गाजियाबाद शहर में हिन्दी के प्रति आम जन व विद्यार्थियों के मन मे प्रेम जगाया। शास्त्री जी ने स्वयं हिन्दी में गीत और कवितायें लिखीं व युवा पीढ़ी को हिन्दी साहित्य लेखन की ओर प्रोत्साहित किया। पं. हर प्रसाद शास्त्री जी के प्रयासों से गाजियाबाद में हिन्दी भवन की स्थापना हुई व गाजियाबाद लोक परिषद् का गठन हुआ।

गाजियाबाद लोक परिषद् के द्वारा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस पर विशाल कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है जिसमें सम्पूर्ण भारत से हिन्दी कवि आकर काव्य पाठ करते हैं। गाजियाबाद लोक परिषद् के बैनर तले काव्य पाठ करके कवि अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

पं. हर प्रसाद शास्त्री बहुत ही सहज, सरल व लक्ष्य के प्रति लगनशील व्यक्ति थे। शास्त्री जी पूर्ण रूप से हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पित थे और जीवन भर हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। वर्ष 2022 में गाजियाबाद में पं. हर प्रसाद शास्त्री का जन्म शताब्दी बर्ष मनाया गया। इसी उपलक्ष में 15 अक्टूबर, 2022 को सायं 7 बजे से हिन्दी भवन में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

 

 

 

 

 

 

Monday, February 24, 2025

 

नागार्जुन


डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 30 जून, सन् 1911 .

पुण्य-तिथि- 5 नवम्बर, सन् 1998 .

नागार्जुन हिन्दी साहित्य के प्रगतिशील विचारधारा के प्रमुख कवि और लेखक थे। नागार्जुन का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परन्तु हिन्दी साहित्य में इन्होंने नागार्जुन व मैथिली में यात्री उपनाम से रचनायें रचीं। काशी में रहते हुये वैदेह उपनाम से भी कवितायें रचीं। सन् 1936 . में सिंहल में विद्यालंकार परिवेण में नागार्जुन नाम ग्रहण किया।

 नागार्जुन की प्रारंभिक शिक्षा लघु सिद्धान्त कौमुदी व अमरकोश के सहारे प्रारंभ हुई। बाद में बनारस जाकर विधिवत संस्कृत की पढ़ाई शुरू की। इन पर आर्य़ समाज और बौद्ध दर्शन का बहुत प्रभाव पड़ा। राजनीति में ये सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित थे। राहुल सांस्कृत्यायन के समान ये यायावर प्रकृति थे और राहुल जी को अपना अग्रज मानते थे। इन्होंने राजनितिक आंदोलनों में भी भाग लिया जैसे- बिहार के किसान आंदोलन, चंपारण के किसान आंदोलन। वस्तुतः ये रचनात्मकता के साथ-साथ सक्रिय प्रतिरोध में विश्वास रखते थे। सन् 1974 . के अप्रैल में जे पी आंदोलन में भाग लेते हुये कहा था- सत्ता प्रतिष्ठान की दुर्नितियों के विरोध में एक जनयुद्ध चल रहा है, जिसमें मेरी हिस्सेदारी सिर्फ वाणी की ही नहीं, कर्म की हो, इसीलिये मैं आज अनशन पर बैठा हूँ, कल जेल भी जा सकता हूँ। और आपालकाल से पहले ही इनको गिरफ्तार कर लिया गया और ये काफी समय तक जेल में रहे।

नागार्जुन ने बलचनमा और वरूण के बेटे उपन्यासों से आंचलिक उपन्यासों की नींव रखी। इनको पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, मैथिली, अंग्रेजी, आदि निभिन्न भाषाओं का ज्ञान था। नागार्जुन कालिदास के मेघदूत से जितने प्रभावित थे उतने ही तुलसी और कबीर की संत पंरपरा के भी निकट थे। इन्होंने नेहरू, बर्तोल्त, निराला, लूशून से लेकर बिनोबा, मोरारजी, जेपी, लोहिया, केन्याता, एलिजाबेथ, आइजन हावर, आदि पर स्मरणीय और अत्यंत लोकप्रिय कवितायें लिखी हैं। ये बीसवीं सदी के जनकवि होने के साथ-साथ अद्वितिय मौलिक बौद्धिक कवि भी थे।

नागार्जुन की प्रमुख रचनायें-

कविता-संग्रह- हजार-हजार बाँहों वाली, युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, आदि।

प्रबंध काव्य- भस्मांकुर, भूमिजा।

उपन्यास- रतिनाथ की चाची, नयी पौध, बलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, दुख मोचन, कुंभीपाक, आदि।

बाल साहित्य- कथा मंजरी भाग-1, कथा मंजरी भाग-2, मर्यादा पुरूषोत्तम राम, विद्यापति की कहानियाँ।

इन्होंने अनुवाद कार्य भी किया है।

नागार्जुन को समय-समय पर विविध पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जिनमें प्रमुख हैं- साहित्य अकादमी पुरस्कार(1967), भारत-भारती सम्मान, राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार(पश्चिम बंगाल सरकार से), आदि।इनको साहित्य अकादमी की सर्वोच्च फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया।

 नागार्जुन की प्रसिद्ध कविता कालिदास का कुछ अंश-

                                                 कालिदास! सच-सच बतलाना

इन्दुमती के मृत्युशोक से

अज रोया या तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

 

वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका

प्रथम दिवस आषाढ़ मास का

देख गगन में श्याम घन-घटा

विधुर यक्ष का मन जब उचटा

खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर

चित्रकूट से सुभग शिखर पर

उस बेचारे ने भेजा था

जिनके ही द्वारा संदेशा

उन पुष्करावर्त मेघों का

साथी बनकर उड़ने वाले

कालिदास! सच-सच बतलाना!

पर पीड़ा से पूर-पूर हो

थक-थककर औ' चूर-चूर हो

अमल-धवल गिरि के शिखरों पर

प्रियवर!तुम कब तक सोये थे?

रोया यक्ष कि तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना।

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