हो आदि शक्ति तुम ही
निराकार हो या
साकार तुम,
हो आदि शक्ति
तुम ही।
नदियाँ इठलाती
चलतीं,
फलती-फूलती
प्रकृति तुम से ही।
गृह-नक्षत्र
रहते घूमते,
चाँद चाँदनी
बरसाता तुम से ही।
लीन प्रलय में
होकर एक दिन,
नव जीवन सब पाते तुम से ही।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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