Monday, February 17, 2025

 

श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 7 मार्च, सन् 1911 ई.

पुण्य-तिथि- 4 अप्रैल, सन् 1987 ई.

 

श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय निबन्धकार, कथाकार, सम्पादक, अध्यापक, स्वतन्त्रता सेनानी, एक सैनिक बहुमुखी प्रतिभा के कवि थे. इन्होंने हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद एवम् नयी कविता को प्रतिष्ठित किया. इनके पिता पं. हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे. पिता की नौकरी में स्थान परिवर्तन के कारण इनका बचपन कई नगरों में बीता व शिक्षा भी अलग-अलग जगह हुई. सन् 1921 ई. में इनके पिता ने इनका यज्ञोपवीत संस्कार कराके इनको वात्स्यायान कुल नाम दिया. अज्ञेय इनका उपनाम है. इन्होंने लाहौर से बी. एस. सी. और अंग्रेजी में एम. ए. किया.

 

अज्ञेय जी ने स्वतन्त्रता आंदोलन में भी भाग लिया. सन् 1930 ई. में भगतसिंह के साथ बम बनाते हुये पकड़े गये और जेल गये. छह वर्ष तक जेल और नजरबंदी भोगने के बाद स्वतन्त्रता आंदोलन छोड़कर सन् 1936 ई. में आगरा से प्रकाशित सैनिक समाचार पत्र के संपादक मंडल में शामिल हो गये. कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहने के बाद सन् 1943 ई. में अंग्रेजी सेना में सैनिक के पद पर नियुक्त हुये. सन् 1946 ई. में सैन्य सेवा छोड़कर ये एकनिष्ठ होकर हिन्दी साहित्य की सेवा में संलग्न हुये. प्रतीक, नया प्रतीक, दिनमान, नवभारत टाइम्स, आदि विविध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.

 

अज्ञेय जी ने सन् 1943 ई. में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ संपादन किया, इसके बाद दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, चौथा सप्तक संपादित किया. चारों सप्तक के माध्यम से इन्होंने नये कवियों को प्रतिष्ठित किया व कविता को नया मोड़ दिया. इन्होंने लम्बी कवितायें भी लिखी हैं और बहुत छोटी कवितायें भी; लेकिन सभी में गहन अनुभूति की अभिव्यक्ति हुई है.

उदाहरण-

छोटी कविता-

 

उड़ गई चिड़िया

काँपी, फिर

थिर

हो गई पत्ती

           अज्ञेय

 

 

 

 

लंबी कविता का अंश-

 

किंतु हम हैं द्वीप। हम धारा नहीं हैं।

स्थिर समर्पण है हमारा। हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के।

किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होना है।

हम बहेंगें तो रहेंगें ही नहीं।

 

            अज्ञेय

अज्ञेय जी के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं- भग्नदूत, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बाबरा अहेरी, इंद्रधनुष रौंदे हुये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, सागर मुद्रा, आदि. शेखर: एक जीवनी प्रसिद्ध उपन्यास है. इसके अतिरिक्त नदी के द्वीप और अपने-अपने अजनबी उपन्यास भी लिखे. विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शऱणार्थी, जयदोल इनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं. इन्होंने यात्रा वृतांत भी लिखे हैं- अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली. उत्तर प्रियदर्शी नाटक भी लिखा. साथ ही निबंध, संस्मरण, डायरियाँ, आलोचना, आदि भी लिखे.

 

सन् 1964 ई. में अज्ञेय जी को आँगन के पार द्वार(काव्य-संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और सन् 1978 ई. में कितनी नावों में कितनी बार(काव्य-संग्रह) के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला.

 

 

 


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