Thursday, February 6, 2025

 

तेरी ही गंध से

धूप, दीप, चंदन,

अक्षत रखे हैं थाल में।

अर्ध्य देने को आतुर

हैं नयन हमारे।

प्रिय! बीत गया विरह का मौसम

बासंती मौसम आ गया।

बासंती गंध से महक रहे

राजपथ के गलियारे।

दिल के गलियारे महकें

तेरी ही गंध से।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग


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