विराजते कान्हा
डॉ. मंजूश्री गर्ग
काश! हम मोर होते।
मोर पंख बन, मुकुट में विराजते कान्हा।
काश! हम बाँस होते कान्हा।
बाँसुरी बन, अधरों पे विराजते कान्हा।
काश! हम कदंब होते।
हमारी ही छाया में, मुरली बजाते कान्हा।
फिर कभी तुम हमसे
पास-पास रहके, ना दूर रहते कान्हा।
--------------------
No comments:
Post a Comment