Wednesday, February 19, 2025

 

श्री जयशंकर प्रसाद


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 30 जनवरी, सन् 1889 ई.

पुण्य-तिथि- 15 नवम्बर, सन् 1937 ई.

 

जयशंकर प्रसाद छायावाद के चार स्तम्भों- जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत- में से तो एक हैं ही साथ ही कवि होने के साथ नाटककार, उपन्यासकार व कहानीकार भी हैं. इनको एक तरह से युग प्रवृत्तक कह सकते हैं. इन्होंने जहाँ हिन्दी काव्य में कोमलकांत मधुर भावों के साथ-साथ गम्भीर विषयों की अभिव्यक्ति खड़ी बोली हिन्दी में करके हिन्दी खड़ी बोली को प्रतिष्ठापित किया. वहीं पारसी नाटकों से अलग ऐतिहासिक चरित्रों पर देशभक्ति पूर्ण नाटक लिखे जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं. कहानी और उपन्यास में भी इनका भाव गाम्भीर्य और भाषा की प्रांजलता देखने को मिलती है.

 

जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रसिद्ध साहू वैश्य परिवार में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा क्वींस कॉलेज में हुई. बाद में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन घर पर ही हुआ. किशोरावस्था में घर की जिम्मेदारी निभानी शुरू की और तंबाकू की दुकान का पैतृक व्यापार सँभालते हुये आजीवन हिन्दी साहित्य की सेवा करते रहे. य़े नागरी प्रचारिणी सभा के सदस्य भी रहे.

 

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख काव्य रचनायें हैं- आँसू, झरना, लहर, चित्राधार, प्रेम-पथिक, कामायनी(महाकाव्य). प्रारम्भ में ब्रजभाषा में रचना की, बाद में खड़ी बोली हिन्दी में उन्हें रूपान्तरित किया. आँसू काव्य-संग्रह में विश्व कल्याण की भावना को वेदना के स्तर पर अभिव्यक्त किया गया है. लहर मुक्तक रचनाओं का संग्रह है और झरना में छायावादी शैली में रचित कवितायें संग्रहीत हैं. कामायनी महाकाव्य इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार है. कामायनी में तीन प्रमुख पात्रों(मनु, श्रद्धा, इड़ा) के माध्यम से मानव मन की सूक्ष्म अनुभूतियों, कामनाओं, आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति की है. मनु मन के प्रतीक हैं, श्रद्धा ह्रदय की प्रतीक है, इड़ा बुद्धि की प्रतीक है. कथानक संक्षिप्त होते हुये भी मानव जीवन के विकास के लिये एक आदर्श प्रस्तुत किया है. साथ ही आनंदवाद दर्शन की भी अभिव्यक्ति की है. प्रसाद जी ने कामायनी की भूमिका में स्वयं लिखा है- यह आख्यान इतना प्राचीन है कि इतिहास में रूपक पक्ष का भी अद्भुत मिश्रण हो गया है. इसलिये मनु, श्रद्धा, इड़ा, इत्यादि अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुये सांकेतिक अर्थ की भी अभिव्यक्ति करें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं.

 

जयशंकर प्रसाद के समय पारसी रंगमंच के अनुकूल नाटक लिखे जा रहे थे लेकिन प्रसाद जी ने साहित्यिक नाटक लिखे जो भारतेन्दु युग की परम्परा के थे. इन्होंने ऐतिहासिक पात्रों को नायक-नायिका बनाकर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर देशभक्ति पूर्ण नाटक लिखे जैसे- चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, राज्यश्री, आदि. इसके अतिरिक्त ध्रुवस्वामिनी, एक घूँट, कामना, आदि नाटक भी लिखे. इन्होंने नाटकों में देशभक्ति पूर्ण गीत भी लिखे हैं जैसे-

1.

अरूण यह मधुमय देश हमारा।

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।

सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरूशिखा मनोहर।

छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।

 

2.

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।

अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।

 

 

जयशंकर प्रसाद जी ने सामाजिक यथार्थवादी उपन्यास लिखे हैं. कंकाल, तितली, इरावती(अपूर्ण) उपन्यासों की भाषा प्रांजल है, कथोपकथन में भावुकता का समावेश हो गया है. इनकी कहानियाँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे- आकाश दीप, गुंडा, आदि. प्रमुख कहानी संग्रह हैं- छाया, प्रतिध्वनि, आकाश दीप, इन्द्रजाल.

 

जयशंकर प्रसाद जी को कामायनी पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ. सन् 1991 ई. में भारत सरकार ने महादेवी वर्मा के साथ इनका दो रूपये मूल्य का डाक-टिकट जारी किया.

 


No comments:

Post a Comment