Tuesday, February 11, 2025


उलझे ही रहे हम।

 

उलझे रहे, उलझे रहे,

उलझे ही रहे हम।

कभी बालों में, कभी बातों में,

कभी यादों में, कभी ख्बाबों में।

उलझे ही रहे हम।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

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