प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने
त्रिवेणी(गंगा,यमुना, सरस्वती) का वर्णन किया है-
प्रागराज सो
तीरत ध्यावौ। जहँ पर गंग मातु लहराय।
एक ओर से जमुना
आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।
सरस्वती नीचे
से निकलीं। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।
X x x x x
सुमिर त्रिबेनी
प्रागराज की। मज्जन करे पाप हो छार।
जगनिक
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