श्री सुमित्रानंदन पंत
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 20 मई, सन् 1900 ई.(कौसानी)
पुण्य-तिथि- 28 दिसंबर, सन् 1977 ई.
सुमित्रानंदन
पंत हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तम्भों- जयशंकर प्रसाद, महादेवी
वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला- में से एक हैं. इनका जन्म
उत्तराखण्ड के कौसानी नामक गाँव में हुआ था जहाँ पग-पग पर प्राकृतिक सौन्दर्य
बिखरा हुआ है. इनका बचपन का नाम गुसाईं दत्त था, लक्ष्मण के चरित्र से प्रभावित
होकर इन्होंने अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया. सौम्य व्यक्तित्व के, प्रकृति
की गोद में पले-बढ़े, प्रकृति-सौन्दर्य का अनुपम वर्णन करने वाले पंत जी ने जीवन
के आगामी वर्षों में गाँधी जी, कार्ल मार्क्स व श्री अरविंदो से प्रभावित होकर
गाँधीवादी, प्रगतिवादी व आध्यात्मिक कवितायें लिखीं. इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी
व अल्मोड़ा में हुई और उच्च शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में. सन् 1921 ई. में असहयोग
आंदोलन में शामिल हुये. बचपन में अल्मोड़ा से हस्तलिखित पत्रिका सुधाकर व
पत्र अल्मोड़ा अखबार निकालते थे जिसमें इनकी भी रचनायें प्रकाशित होती थीं.
सुमित्रानंदन
पंत ने एकांकी, उपन्यास, कहानी, आलोचना, आदि विविध विधाओं में लिखा है लेकिन
प्रसिद्धि इनको कवि रूप में ही मिली. इन्होंने स्वयं लिखा है, मेरे मूक कवि को
बाहर लाने में सर्वाधिक श्रेय मेरी जन्मभूमि के उस नैसर्गिक सौन्दर्य को है जिसकी
गोद में पलकर मैं बड़ा हुआ जिसने छुटपन से ही मुझे अपने रूपहले एकांत में एकाग्र
तन्मयता के रश्मिदोलन में झुलाया, रिझाया और कोमल कंठ वनपंखियों के साथ बोलना
कुहुकन सिखाया.
पल्लविनी में सुमित्रानंदन पंत की सन् 1918 ई. से सन् 1936 ई. तक
प्रकाशित काव्य-संग्रहों- वीणा, ग्रंथि, पल्ल्व, गुंजन, ज्योत्सना, युगांत की
विशिष्ट कवितायें संकलित हैं. जिनमें प्रकृति-चित्रण, प्रेम और बालपन की कवितायें
हैं जो इनके अनुसार इनके प्रथम चरण की कवितायें हैं.
उदाहरण-
अरे! ये पल्लव-बाल!
सजा सुमनों के
सौरभ-हार
गूँथते वे
उपहार।
अभी तो है ये
नवल-प्रभात,
नहीं छूटी तरू
डाल;
विश्व पर
विस्मित-चितवन डाल,
हिलाते
अधर-प्रबाल।
दिवस का इनमें
रजत-प्रसार
उषा का
स्वर्ण-सुहाग;
निशा का
तुहिन-अश्रु-श्रृंगार,
साँझ का
निःस्वन-राग;
नवोढ़ा की
लज्जा सुकुमार,
तरूणतम
सुन्दरता की आग।
इनके अनुसार इनके
द्वितीय चरण की कवितायें चिदंबरा में संकलित हैं. चिदंबरा में युगवाणी,
ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, युगांतर, उत्तरा, रजत शिखर, शिल्पी, सौवर्ण,
अतिमा काव्य-संग्रहों की कवितायें संकलित हैं. चिदंबरा के लिये इनको भारतीय
ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. द्वितीय चरण की कविताओं में
मानवतावादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति हुई है.
उदाहरण-
सुन्दर हैं
विहग सुमन सुन्दर
मानव तुम सबसे
सुन्दरतम!
हम मनः स्वर्ग
के अधिवासी
जग जीवन के शुभ
अभिलाषी,
नित विकसित,
नित वर्धित, अर्पित,
युग युग के सुरगण
अविनाशी!
हम नामहीन,
अस्फुट नवीन,
नवयुग अधिनायक,
उद्भासी!
इन्होंने तृतीय
चरण की कवितायें मानव कल्याण के लिये लिखीं थीं. इन्होंने कहा है, आने वाला कल
निश्चय ही न पूर्व का होगा न पश्चिम का. ये सार्वभौम मनुष्यता के विश्वासी थे.
सुमित्रानंदन
पंत ने दो महाकाव्य लिखे- लोकायतन और सत्यकाम. लोकायतन में लोक जीवन
के प्रति प्रतिबद्धता अभिव्यक्त हुई है. इन्होंने लोकायतन अपने पिता को
समर्पित किया है और सत्यकाम अपनी माता को, जो जन्म देते ही स्वर्ग सिधार
गईं थीं. सत्यकाम महाकाव्य प्रस्तुत पंक्तियों द्वारा अपनी माँ को समर्पित
किया है-
मुझे छोड़ अनगढ़ जग में तुम हुईं अगोचर,
भाव-देह धर लौटीं माँ की ममता से भर।
वीणा ले कर में, शोभित प्रेरणा हंस पर,
साध चेतना-तंत्रि रसौ वै सः झंकृत कर
खोल ह्रदय के भावी के सौन्दर्य दिगन्तर।
सुमित्रानंदन
पंत जी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार के अतिरिक्त लोकायतन के लिये सोवियत लैंड पुरस्कार, कला और बूढ़ा चाँद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार और
सन् 1961 ई. में पद्म भूषण से भारत सरकार ने सम्मानित किया.
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