मूर्ति और मूर्तिकार
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जिसको बनाया कल तुमने
वही आज तुमको बना रहा.
तुमने एक खिलौना बनाया,
वो बना रहा विशाल रूप.
तुम में ना वो लग्न देखी,
जो दीख रही लग्न उसमें.
तुमने उसे रूदन करते भेजा,
वो बना रहा सस्मित चेहरा.
उसे शक्तिहीन कर तुमने भेजा,
इसी से तुमसे माँग रहा शक्ति.
किन्तु उसने सब शक्ति समर्पित की तुमको
जिससे जग-जीव पूजते रहेंगे सदा तुमको.
तुम्हारा बनाया खिलौना कल मिट्टी होगा,
पर उसकी बनायी मूर्ति रहेगी युगों तक.
पर क्या हुआ, जो खिलौना बनाकर तुम हार गये,
उस खिलौने को मूर्तिकार बनाकर तुम ही तो जीते हो.
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