सीता की प्रतिज्ञाः
शूल नहीं चुभे थे कभी
कंटक भरी राहों में,
क्योंकि तुम साथ थे.
रावण की लंका में भी
रही थी सुकून से
क्योंकि तुम साथ थे.
आज अकारण ही
निर्वासित किया है तुमने
जानते हुये भी कि
गर्भ में तुम्हारा ही अंश
है.
बहुत ही अकेली
महसूस कर रही हूँ
मैं जग में.
अपनी ही परछाईं से
डर रही हूँ
मैं वन में.
आज राम तुमनें नहीं!
मैंने निर्वासित किया है
तुम्हें ह्रदय से.
भूमि से जन्मी हूँ
भूमि में समा जाऊँगी
पर वापस तुम्हारी
अयोध्या में
कभी नहीं आऊँगी.
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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