हिन्दी साहित्य
Thursday, December 28, 2017
कल्पना
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
‘
गर ये कल्पना ना होती
कैसे आँकते छवि ह्रदय में।
कैसे करते अभिषेक उनका
कैसे चढ़ाते भाव-सुमन।
कैसे उतारते नयन आरती
‘
गर ये कल्पना ना होती
कैसे होता दीदार सनम से।
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