हिन्दी साहित्य
Monday, December 25, 2017
ह्रदय छवि झाँकती नयनन के दर्पण में,
मन के राग मचलते अधरों के प्याले में।
मत भटकता फिर, राह के भोले पंछी
बाँध ले मन की डोर यहीं, पा जायेगा धीर।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment