हिन्दी साहित्य
Wednesday, December 27, 2017
जब भी कोई चित्र आँकते,
रंगों में भाव नहीं उतरते।
जब भी भाव शव्दों में बाँधते
मन के भाव नहीं छंद बनते।
भावों के परिधानों की अपूर्णता
पहनती नित-नूतन परिधान।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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