एक बूँदः
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
सागर से चुराकर अपना अस्तित्व
वाष्प बन रख लिया बादल रूप।
सूरज से चुराकर उसकी किरणें
इन्द्रधनुषी रंग में रंगा तन-मन।
तपती धरती को देख मन तड़पा
अश्रु लड़ी में पिर आयी धरती पर।
किन्तु सीपी में गिरी, बनी एक मोती
एक बूँद नन्हीं सी, प्यारी सी।
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