माँझीः दो शब्द-
माँझी न खोलो इन बेड़ियों
को
‘गर न हो हिम्मत तूफानों से
लड़ने की।
मन में कोई आस नहीं, ना ही
महत्वाकांक्षा कोई.
इस तट-किनारे अस्तित्व बना,
अनगिन बहारें देखी यहाँ,
तूफान भी झेले बहुत।
माँझी! जंजीर खोलने से पहले सोच
लेना,
‘गर बेड़ियाँ खोली, तो साथ
निभाना पार तक।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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