Thursday, December 14, 2017



माँझीः दो शब्द-



माँझी न खोलो इन बेड़ियों को
गर न हो हिम्मत तूफानों से लड़ने की।
मन में कोई आस नहीं, ना ही महत्वाकांक्षा कोई.

इस तट-किनारे अस्तित्व बना,
अनगिन बहारें देखी यहाँ,
तूफान भी झेले बहुत।

माँझी! जंजीर खोलने से पहले सोच लेना,
गर बेड़ियाँ खोली, तो साथ निभाना पार तक।

                                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग





No comments:

Post a Comment