हिन्दी साहित्य
Sunday, November 11, 2018
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
लकीरें नहीं.
अनुभव-आखर
लिखे माथे पे।
‘
कौर
’
भी स्वर्ण
अभिशाप बना है
वरदान पा।
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