महाराजा अग्रसेन
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
महाराजा अग्रसेन एक प्रतापी राजा थे. आप क्षमता, ममता और समता की त्रिविध
मूर्ति थे. आप क्षत्रिय थे. आपका जन्म सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्रजी के कुल
में द्वापर युग के अन्तिम काल में व कलियुग के प्रारम्भ में लगभग 5023 वर्ष पूर्व
शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन हुआ था. आपके पिता महाराजा वल्लभसेन और माता भगवती
देवी थीं. महाराजा वल्लभसेन प्रतापनगर(वर्तमान में राजस्थान व हरियाणा राज्य के
बीच सरस्वती नदी के किनारे स्थित) के राजा थे. महाराजा वल्लभसेन ने महाभारत के
युद्ध में पांडवों के पक्ष से लड़ते हुये युद्ध के दसवें दिन भीष्म पितामह के
वाणों से वीरगति प्राप्त की थी.
महाराजा अग्रसेन के दो विवाह हुये थे. एक बार नागराज की कन्या माधवी का
स्वयंवर था जिसमें अग्रसेन महाराज भी गये थे और अनेक राजाओं के साथ इंद्रदेव भी
उपस्थित थे. माधवी जी ने वर के रूप में अग्रसेन जी को चुन लिया जिससे इंद्रदेव
कुपित हो गये और उन्होंने प्रतापनगर में अकाल की स्थिति उत्पन्न कर दी. तब आपने
प्रतापनगर को संकट से बचाने के लिये लक्ष्मी जी की आराधना की. लक्ष्मी जी ने
प्रसन्न होकर अग्रसेन जी को सलाह दी कि तुम कोलापुर के राजा नागराज महीरथ की
पुत्री का वरण कर लो तो उनकी शक्तियाँ तुम्हें प्राप्त हो जायेंगी और इंद्र
तुम्हारा अहित नहीं कर पायेगा. तब आपने राजा नागराज महीरथ की पुत्री सुंदरावती से
दूसरा विवाह कर प्रताप नगर को संकट से बचाया.
माँ लक्ष्मी ने अग्रसेन महाराज को परोपकार हेतु किये गये तप से प्रसन्न होकर
प्रजा के हित के लिये नये राज्य की स्थापना का आदेश दिया. माँ लक्ष्मी का आदेश
स्वीकार कर आपने अपनी पत्नी माधवी के साथ भारतवर्ष का भ्रमण किया. भ्रमण के दौरान
आपने देखा कि एक जगह एक शेरनी ने शावक को जन्म दिया, शावक ने अग्रसेन महाराज के
हाथी को अपनी माँ के लिये संकट समझकर उस पर छँलाग लगा दी. आपको यह दैवीय संदेश लगा
और आपने यहीं पर अपने राज्य की स्थापना करने का संकल्प किया. ऋषि मुनियों व
ज्योतिषियों की सलाह से नये राज्य का नाम अग्रोदय रखा और राजधानी अग्रोहा की
स्थापना की. यह स्थान हरियाणा राज्य में हिसार के पास है.
महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है. आपने नियम बनाया कि आपके
नगर में कोई बाहर का व्यक्ति रहने के लिये आता है तो उस परिवार की सहायता के लिये
प्रत्येक परिवार उसे उस समय का प्रचलित एक सिक्का व एक ईंट भेंट करेगा. इससे आने
वाला परिवार आसानी से अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है और रहने के लिये मकान का
निर्माण कर सकता है. आपने तंत्रीय शासन प्रणाली के स्थान पर गणतंत्र की स्थापना कर
अपने राज्य को अठारह गणराज्यों में विभाजित कर एक विशाल गणराज्य की स्थापना की.
महाराजा अग्रसेन ने अठारह यज्ञ किये. महर्षि गर्ग ने अग्रसेन महाराज को अठारह
गणाधिपतियों के साथ अठारह यज्ञ करने का संकल्प कराया. प्रत्येक यज्ञ को एक ऋषि ने
सम्पन्न कराया. उसी ऋषि के नाम से उस गणाधिपति को एक गोत्र का नाम दिया. यज्ञों
में बैठे अठारह गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवाल समाज के साढ़े सत्रह गोत्र हैं.
उस समय यज्ञ में पशुबलि अनिवार्य रूप से दी जाती थी. अठारवें यज्ञ के समय अग्रसेन
महाराज को पशुबलि से घृणा हो गयी और आपने पशुबलि पर रोक लगा दी जिसके कारण ऋषियों
ने उस यज्ञ को अधूरा माना. इसलिये आज भी अठारवें गोत्र को आधा गोत्र माना जाता है.
यज्ञ ऋषि गोत्र
पहला गर्ग गर्ग
दूसरा गोभिल गोयल
तीसरा गौतम गोइन
चौथा वत्स बंसल
पाँचवाँ कौशिक कंसल
छठा शांडिल्य सिंघल
सातवाँ मंगल मंगल
आठवाँ जैमिन जिंदल
नवाँ तांड्य तिंगल
दसवाँ और्व ऐरन
ग्यारहवाँ धौम्य धारण
बारहवाँ मुद्गल मन्दल
तेरहवाँ वसिष्ठ बिंदल
चौदहवाँ मैत्रेय मित्तल
पंद्रहवाँ कश्यप कुच्छल
सोलहवाँ तायल तायल
सत्रहवाँ मधुकूल मधुकूल
अठारहवाँ नगेन्द्र नांगल
महाराजा अग्रसेन ने यज्ञों में पशुबलि बंद कर क्षत्रिय धर्म छोड़कर वैश्य धर्म
अपना लिया. आज भी अग्रवाल समाज हिंसा से यथासम्भव दूर ही रहता है. आपने 108 वर्ष
तक राज्य किया. आपके जीवन के मूल तीन आदर्श थे- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक
समरूपता, सामाजिक समानता. एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुल देवी महालक्ष्मी
से परामर्श कर आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों सौंपकर आप
तपस्या करने वन चले गये.
महाराजा अग्रसेन के सम्मान में 24 सितंबर, सन् 1976 ई0 को भारत सरकार ने 25
पैसे का डाक टिकट जारी किया. सन् 1995 ई0 में एक विशेष तेल वाहक पोत(जहाज) का नाम महाराजा
अग्रसेन रखा गया. राष्ट्रीय राजमार्ग-10 का आधिकारिक नाम महाराजा अग्रसेन के
नाम पर है.
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