Wednesday, November 14, 2018




कदंब




डॉ0 मंजूश्री गर्ग

सूरज ने रंग दी पंखुरियां
शीत पवन ने भेजी गंध,
पात-पात में बजी बाँसुरी
दिशा-दिशा झरता मकरंद।

सावन के भीगे संदेशे
लेकर आया फूल कदंब।
                        - शशि पाधा

कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकार वृक्ष है. सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेजी से बढ़ने वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है. इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई 45 मी0 तक हो सकती है. पत्तियों की लंबाई 13 से 23 से0मी0 होती है. अपने स्वाभाविक रूप में चिकनी, चमकदार, मोटी और उभरी नसों वाली होती हैं, जिनसे गोंद निकलता है. चार-पाँच वर्ष का होने पर कदंब में फूल आने शुरू हो जाते हैं. कदंब के फूल लाल, गुलाबी, पीले और नारंगी रंगों के होते हैं. अन्य फूलों से भिन्न कदंब के फूल गेंद की तरह गोल लगभग 55 से0मी0 व्यास के होते हैं, जिनमें उभयलिंगी पुंकेसर कोमल शर की भाँति बाहर की ओर निकले होते हैं. ये गुच्छों में खिलते हैं. इसीलिये इसके फल भी छोटे गूदेदार गुच्छों में होते हैं, जिनमें से हर एक में चार संपुट होते हैं. इसमें खड़ी और आड़ी पंक्तियों में लगभग 8000 बीज होते हैं. पकने पर ये फट जाते हैं और इनके बीज हवा या पानी से दूर-दूर तक बिखर जाते हैं. कदंब के फल और फूल पशुओं के लिये भोजन के काम आते हैं. इसकी पत्तियाँ भी गाय के लिये पौष्टिक भोजन समझी जाती हैं. इसका सुगंधित नारंगी फूल हर प्रकार के पराग एकत्रित करने वाले कीटों को आकर्षित करता है जिसमें अनेक भौंरे मधुमक्खियाँ तथा अन्यकीट शामिल हैं.

श्याम ढ़ाक आदि कुछ स्थानों में ऐसी जाति के कदंब पाये जाते हैं, जिनमें प्राकृतिक रूप से दोनों की तरह मुड़े हुये पत्ते निकलते हैं. कदंब का तना 100 से0 मी0 160 से0मी0 का होता है. पुराना होने पर धारियाँ टूट कर चकत्तों जैसी बन जाती हैं. कदंब की लकड़ी सफेद से हल्की पीली होती है. इसका घनत्व 290 से 560 क्यूबिक प्रति मीटर और नमी लगभग 15 प्रतिशत होती है. लकड़ी के रेशे सीधे होते हैं यह छूने में चिकनी होती है और इसमें कोई गंध नहीं होती. लकड़ी का स्वभाव नर्म होता है इसलिये औजार और मशीनों से आसानी से कट जाती है. यह आसानी से सूख जाती है और इसको खुले टैंकों या प्रेशर वैक्यूम द्वारा आसानी से संरक्षित किया जा सकता है. इसका भंडारण भी लंवे समय तक किया जा सकता है. इस लकड़ी का प्रयोग प्लाइवुड के मकान, लुगदी और कागज, बक्से, क्रेट, नाव और फर्नीचर बनाने के काम आती है. कदंब के पेड़ से बहुत ही उम्दा किस्म का चमकदार कागज बनता है. इसकी लकड़ी को राल या रेजिन से मजबूत किया जाता है. कदंब की जड़ों से एक पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है.

जंगलों को फिर से हरा-भरा करने, मिट्टी को उपजाऊ बनाने और सड़कों की शोभा बढ़ाने में कदंब महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह तेजी से बढ़ता है और छः से
आठ वर्षों में अपने पूरे आकार में आ जाता है. इसलिये जल्दी ही बहुत-सी जगह को हरा-भरा कर देता है. विशालकाय होने के कारण यह ढ़ेर सी पत्तियाँ झाड़ता है जो जमीन के साथ मिलकर उसे उपजाऊ बनाती है. सजावटी फूलों के लिये इसका व्यवयायिक उपयोग होता है साथ ही इसके फूलो का प्रयोग एक विशेष प्रकार के इत्र को बनाने में भी किया जाता है. भारत में बनने वाला यह इत्र कदंब की सुगंध को चंदन में मिलाकर वाष्पीकरण पद्धति द्वारा बनाया जाता है. ग्रामीण अंचलों में इसका उपयोग खटाई के लिये होता है. इसके बीजों से निकला तेल खाने और दीपक जलाने के काम आता है.

इस प्रकार कदंब का वृक्ष प्रकृति और पर्यावरण को तो संरक्षण देता ही है, औषधि और सौन्दर्य का भी महत्तवपूर्ण स्रोत है.

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