Wednesday, November 21, 2018




हो आदि शक्ति तुम ही

निराकार हो या साकार तुम,
हो आदि शक्ति तुम ही।
नदियाँ इठलाती चलतीं,
फलती-फूलती प्रकृति तुम से ही।
गृह-नक्षत्र रहते घूमते,
चाँद चाँदनी बरसाता तुम से ही।
लीन प्रलय में होकर एक दिन,
नव जीवन सब पाते तुम से ही।

          डॉ0 मंजूश्री गर्ग


No comments:

Post a Comment