Friday, July 1, 2022


डॉ. कुँअर बेचैन



डॉ. मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि- 1 जुला. सन् 1942 .

पुण्य-तिथि- 29 अप्रैल, सन् 2021 .


डॉ. कुँअर बेचैन का पूरा नाम कुँअर बहादुर सक्सैना था। आपके पिता का नाम श्री नारायण दास सक्सैना और माता का नाम श्रीमती गंगादेवी सक्सैना था। बचपन में ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण आपका पालन-पोषण बहन प्रेमवती व बहनोई जंग बहादुर सक्सैना द्वारा हुआ। एम. कॉम और एम. .(हिन्दी) तक शिक्षा प्राप्त कर सन् 1965 . में गाजियाबाद(. प्र.) में एम. एम. एच. कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुये। एम. एम. एच. कॉलेज से ही आपने प्रेमचन्द के ऊपर शोध कार्य कर डॉक्टरेट् की उपाधि प्राप्त की। सन् 2002 . में एम. एम. एच. कॉलेज, गाजियाबाद(. प्र.) से हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुये। सन् 1965 . में श्रीमती संतोष सक्सैना से आपका विवाह हुआ। आपके सहयोग से श्रीमती संतोष कुँअर ने एम. . तक शिक्षा प्राप्त की। आपकी पुत्री श्रीमती वंदना कुँअर रायजादा व पुत्र श्री प्रगीत कुँअर साहित्य प्रेमी हैं व कवितायें कहने व सुनने में रूचि रखते हैं।


डॉ. कुँअर बेचैन ने नवीं कक्षा से ही कवितायें लिखना शुरू कर दिया था औऱ सन् 1959 . से कवि सम्मेलनों में काव्य-पाठ करना शुरू कर दिया था। आप आजीवन देश-विदेश में कवि सम्मेलनों में भाग लेते रहे। डॉ. कुँअर बेचैन हिन्दी साहित्य के अति आधुनिक काल की चिर-प्रचलित काव्य-विधाओं- नवगीत व हिन्दी गजल के तो सशक्त हस्ताक्षर हैं ही; साथ ही आपने अन्य काव्य विधाओं- दोहा, हाइकु, आदि में भी अपनी रचनायें रचीं। काव्य-विधाओं के साथ-साथ आपकी गद्य रचनायें भी सरल, सुबोध व सरस हैं। आग पर कंदील पुस्तक की भूमिका से गद्य-अंश-


व्यक्ति का मन भी एक कंदील की ही तरह हैं- एक अदृश्य कंदील, जिसके भीतर स्नेह से भीगी एक ज्योति प्रज्ज्वलित करती है- दीपक के रूप में। मन स्वयं में आलोकित होकर अन्तर्जगत को प्रकाश से भर रहा है------

देह भी एक कंदील है-------

इस कंदील में भी स्नेहभीगी वर्तिका से सुसज्जित ह्रदय-दीप प्रज्ज्वलित है----

आलोक का मेला लगा है- भीतर। किरणें बाहर तक आ रही हैं। सारे अँधियारे इन किरणों से निसृत ज्योति-सरिताओं में स्नान कर रहे हैं-

काली रात बीत रही है, उजाला मुस्कुरा रहा है-----------------


डॉ. कुँअर बेचैन


डॉ. कुँअर बेचैन की प्रसिद्ध प्रकाशित पुस्तकें हैं-

गीत-संग्रह- पिन बहुत सारे, भीतर साँकल बाहर साँकल, उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोर पंख, एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुये, लौट आये गीत के दिन, कुँअर बेचैन के प्रेमगीत, कुँअर बेचैन के नवगीत।


गजल-संग्रह- शामियाने काँच के, महावर इंतजारों का, रस्सियाँ पानी की, पत्थर की बाँसुरी, दीवारों पर दस्तक, नाव बनता हुआ कागज, आग पर कंदील, आँधियों मे पेड़, आठ सुरों की बाँसुरी, आँगन की अलगनी, तो सुबह हो, कोई आवाज देता है।


कविता-संग्रह- नदी तुम रूक क्यों गई, शब्दः एक लालटेन।


महाकाव्य- प्रतीक पांचाली।


हाइकु-संग्रह- पर्स पर तितली।


दोहा-संग्रह- दो होठों की बात।


सैद्धान्तिक पुस्तक- गजल का व्याकरण।


यात्रा-वृतांत- बादलों का सफर।


उपन्यास- मरकत द्वीप की नीलमणि।


कविता संकलन- मध्यकाल के कवि।



डॉ. कुँअर बेचैन को समय-समय पर विविध सम्मानों से भी सम्मानित किया गया जैसे- हिंदी साहित्य अवार्ड(1997), . प्र. हिंदी संस्थान का साहित्यभूषण सम्मान(2002), हिन्दी गौरव सम्मान, आदि। आपको डी. लिट् की मानद् उपाधि से भी सम्मानित किया गया।






 

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