Monday, July 18, 2022

 

डॉ. विद्यानिवास मिश्र



डॉ. मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि- 14 जनवरी, सन् 1926 .

पुण्य-तिथि- 14 फरवरी, 2005 .


डॉ. विद्यानिवास मिश्र का जन्म गोरखपुर(. प्र.) जिले के पकड़डीहा गाँव में हुआ था।सन् 1945 . में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. . किया। सन् 1960-61 . में गोरखपुर विश्वविद्यालय से श्री राहुल सांस्कृत्यायन के निर्देशन में पाणिनी व्याकरण पर शोधकार्य किया। सन् 1957 . से आप विश्वविद्यालय सेवा से जुड़े रहे। आपने गोरखपुर विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालय में संस्कृत और भाषा विज्ञान का अध्यापन किया। आप काशी विद्यापीठ एवम् सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय , वाराणसी के कुलपति व नवभारत टाइम्स, दैनिक पत्र के प्रधान सम्पादक भी रहे। आपने अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय मे भी शोध कार्य किया और सन् 1967-68 . में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अध्येता रहे।

डॉ. विद्यानिवास मिश्र हिन्दी साहित्य में अपने ललित निबन्धों व आलोचनाओं के लिये प्रसिद्ध हैं। आपने हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा प्रारम्भ की गयी हिन्दी साहित्य में ललित निबन्धों की परम्परा को आगे बढ़ाया। आपका पहला निबन्ध संग्रह छितवन की छाँव नाम से सन् 1952 . में प्रकाशित हुआ। आपके निबन्धों का संसार बहुआयामी है। आपके निबन्धों में प्रकृति, लोकतत्व, बौद्धिकता, सर्जनात्मकता, कल्पनाशीलता, काव्यात्मकता एवम् रचनात्मकता, भाषा की उर्वर सर्जनात्मकता, सम्प्रेषणीयता एक साथ मिलती है।

डॉ. विद्यानिवास मिश्र जी ने हिन्दी भाषा और अंग्रेजी भाषा में दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इनमें महाभारत का काव्यार्थ और भारतीय भाषा दर्शन की पीठिका प्रमुख हैं। ललित निबन्धों में तुम चंदन हम पानी(1957), बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं(1972) प्रमुख हैं। अन्य प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- शोध ग्रंथों में हिन्दी की शब्द-संपदा, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, कंदब की फूली डाल, लोक और लोक का स्वर(लोक की भारतीय जीवन सम्मत परिभाषा और उसकी अभिव्यक्ति), आज के हिन्दी कवि-अज्ञेय, आदि।


डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने डॉ. विद्यानिवास मिश्र के ललित निबन्धों के विषय में लिखा है- किसी विषय को लेकर उनके ललित शैली में लिखे निबन्ध अलग हैं जैसे-जयदेव के गीत-गोविन्द को आधार बनाकर लिखा राधा माधव रँग रँगी अथवा महाभारत का काव्यार्थ या साहित्य का खुला आकाश। जो विषय विशेष पर लिखे निबन्धों के संग्रह हैं। उनके ह्रदय से निकले ललित निबन्थ तो वे हैं जिनमें कहीं गाँव के खलिहान में खुशी से झूमते अल्हड़ किसान के मुँह से निकले भोजपुरी लोकगीत का आह्लाद है, कहीं धान कूटती ग्रामीण युवतियों की चूड़ियों की खनक है, कहीं संयुक्त परिवार की नववधुओं की मंद-मंद हँसी।


डॉ. विद्यानिवास मिश्र की लालित्यमय भाषा का उदाहरण- यह शरीर ही रथ है, आत्मा रथी है, बुद्धि सारथि है। इन्द्रियगण घोड़े हैं, मन लगाम है, इन सबको एक सामंजस्य में करने का संकल्प बार-बार होता रहता है और असहज भोग से सहज साहचर्य की ओर, सहज आत्मीयता की ओर रथ मोड़ने का संकल्प उठता रहता है, सही दिशा में रथ मोड़ने का संकल्प होता रहता है, कुछ इन्द्रियों की चपलता से, मन की दुर्दम्यता से और बुद्धि के प्रमाद से शरीर अवश हो जाता है, रथी भी ऊँघने लगता है और रथ कीचड़ में फँस जाता है।

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