साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, साहित्य में समाज की आत्मा निवास करती है। यदि किसी समाज की संस्कृति से परिचित होना है तो पहले वहाँ की भाषा सीखिए और उस भाषा में रचित साहित्य पढ़िए।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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