Thursday, July 7, 2022


छोटी दीदी


डॉ. मंजूश्री गर्ग


शांत दीप-शिखा सी मेरी दीदी

कब का भूल चुकी मुस्काना।

कभी जिनकी मुस्कान पर

दीवाना था हर कॉलेज का लड़का

कब किसको मालूम हुआ कि

मुस्कानों के बीच किसी मुस्कान पर मोहित हैं दीदी।


मोहित मुस्कान डॉ. अरूण लिये

कभी आये थे लाल गुलाब लिये।

मन में प्यार का उत्ताप और

प्यार का खुशबू ह्रदय में लिये।

पर देने से पहले फूल

बुरी खबर डॉ. अरूण को मिली।

हमारे सिर से छिन गया

माँ-बाप का साया।

एक और सड़क दुर्घटना में

फिर दो बच्चे अनाथ हुये।

दीदी बनी छतरी मेरी, माँ-बाप ही नहीं

भाई-बहन का प्यार भी भरपूर लुटाया।

मैडम ने भी साथ हमारा भरपूर निभाया।



और डॉ. अरूण के हाथ का गुलाब

रह गया हाथ ही में।

जो सुरक्षित है आज भी उनके ह्रदय में

फूल भी अभी मुरझाया नहीं है।

ना खुशबू ही कम हुई है।

उनके आई-कार्ड के साथ-साथ

पहचान है वो सूखा गुलाब, पहले प्यार की

पहला प्यार!----------

पहला, दूसरा---------

सब कुछ बस वही है उनका वो गुलाब।


दीदी के साथ-साथ

डॉ. अरूण के जीवन में भी

अभी तक कोई बहार आई नहीं।

दोनों ही कर्म-पथ में लीन है इतने कि

गृहस्थ आश्रम का कर्म भी है जीवन का कर्म

भूल बैठे हैं दोनों एक पथ के पथिक दो।


छोटी हूँ तो क्या हुआ

इतना तो कह ही सकती हूँ दीदी से मैं

ना मुझे जीजू के स्नेह से करें वंचित

बस मुझसे पहले अपना विवाह रचा लें।

दो से तीन हों घर में

सम्बन्ध विस्तार बढ़ा लें।

माँ ने सींची थी जो डाल

उसे सजा लें।


रचा विवाह मेरा

ना पूरा अपना कर्तव्य समझें।

करती हैं मुझसे अति प्यार

तो अपना विवाह रचा लें।

मेंहदी की महक, पायल की रूनझुन से

अपना सुख संसार सजा लें।


डॉ. अरूण को मेरा नहीं

बनायें अपना जीवन साथी

मैडम भी होंगी खुश

जानकर ये खुश-खबर।


शायद सबसे पहले

मैडम ने ही जाना था।

तुम्हारे और अरूण के प्यार को।

जब अरूण चुपचाप तोड़ लाया था

अपनी बगिया का पहला गुलाब।

और फिर----------------

और बच्चों की तरह

ना तो रोया अरूण

ना तोड़ कर फेंका फूल।


ना स्वाभिमान तुम्हार तोड़ा

ना अरूण का प्यार भरा दिल तोड़ा।

तुम्हारे और अरूण के प्यार को

सींचती रहीं मैडम।

ताकि समय आने पर

तुम और अरूण जीवन-साथी बन सकें।


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