हिन्दी साहित्य
Saturday, December 22, 2018
तेरे पास पहुँचने की आशा में,
मैं निरंतर चलता जा रहा हूँ।
पर तू केंद्र में खड़ा मुस्कुरा रहा है,
और मैं परिधि के चक्कर लगा रहा हूँ।
गुलाब खंडेलवाल
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