प्रस्तुत पंक्तियों में कवि
ने अपने आत्म सम्मान का वर्णन किया है- एक बार अकबर ने कुम्भनदास को फतेहपुर सीकरी
बुलाया, कवि राजा की भेजी हुई सवारी पर न जाकर पैदल ही गये और जब राजा ने कुछ गायन
सुनने की इच्छा प्रकट की तो कवि ने गाया-
भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि
गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख लागे
ताको करन करी परनाम।
कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन
यह सब झूठो धाम।
कुम्भनदास
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