प्रस्तुत पंक्तियों में कवि
ने अपना आत्म परिचय दिया है-
दीक्षित परशुराम दादा हैं विदित नाम,
जिन कीन्हें जज्ञ, जाकी विपुल बड़ाई है।
गंगाधर पिता गंगाधर के समान जाके,
गंगातीर बसति ‘अनूप’ जिन पाई हैं।
महा जानमनि, विद्यादान ह में चिंतामनि,
हीरामन दीक्षित तें पाई पंड़िताई है।
सेनापति सोई, सीतापति के प्रसाद जाकी,
सब कवि कान दैं सुनत कविताई हैं।
सेनापति
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