प्रेम के रिश्ते, अपनेपन के रिश्ते लाभ-हानि के विचार मन में रख कर नहीं बनते
और जो व्यक्ति हर जगह लाभ-हानि के विषय में ही सोचता है उसके लिये अपना ही घर
बाजार बन जाता है. जैसे प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है-
मैंने हर रिश्ते खाली लाभ
तलाशा,
मुझको अपने ही घर में बाजार
मिला है।
लक्ष्मण
No comments:
Post a Comment