भक्ति काल में कवियों ने
रहस्यवादी रचनायें रची हैं और ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त किया है और
मिलन की उत्कंठा, तड़प को अभिव्यक्त किया है-
दीपक दिया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहुणा, बहुरि न आवौं हट्ट।।
कबीर
बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं बिसराम।।
कबीर
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन राती।।
रैदास
जब हम हुते तवै तुम्ह नांही, अब तुम्ह हौं मैं नांही।
X x x x x
कहै रैदास भगति एक उपजी, सहजै होइ स होइ।
रैदास
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