एक बार जयचंद ने कवि
चन्द्रवरदायी से व्यंग्यात्मक प्रश्न किया-
मुँह दरिद्र अरू तुच्छ तन,
जंगल राव सुह्द्।
वन उजार पशु तन चरन, क्यों
दूबरो वरद्द।
चन्द्रवरदायी
कवि ने भी व्यंग्यात्मक
ढ़ंग से उत्तर दिया-
चढ़ि तुरंग चहुआन, आन फेरीत
परद्धर।
तास जुद्ध मंड़यो, जस
जान्यो सबर बर।।
केइक तकि गहि पात, केई गहि
डारि मूर तरू।
केईक दन्त तुछ भिन्न, गए दस
दिसि निभाजि डर।।
भुज लोकत दिन अचिर रिन, गए
दस दासिनि भाजि डर।
पृथिराज खलन खदधौ जुखर, मान
सबर बर भरद्दौ पर।।
चन्द्रवरदायी
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